शहर Poetry (page 2)

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

जवाँ आग

हबीब जालिब

अपने शहर के लिए दुआ

मुनीर नियाज़ी

ज़ूमिंग

अशफ़ाक़ हुसैन

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

इश्क़ में मारके बला के रहे

ज़ुहूर नज़र

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

ज़ुहूर नज़र

अपनों के ज़ख़्म खा के मैं निकला जो शहर से

ज़ुहैर कंजाही

जीने की है उमीद न मरने की आस है

ज़ुहैर कंजाही

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

सफ़ा और सिद्क़ के बेटे

ज़ुबैर रिज़वी

रद्द-ए-अमल

ज़ुबैर रिज़वी

अमीर-ए-शहर की नेकी

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली

ज़ुबैर रिज़वी

दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था

ज़ुबैर रिज़वी

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