शहर Poetry (page 95)

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है

अब्बास ताबिश

शजर समझ के मिरा एहतिराम करते हैं

अब्बास ताबिश

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है

अब्बास ताबिश

नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है

अब्बास ताबिश

मेरे आ'साब मोअ'त्तल नहीं होने देंगे

अब्बास ताबिश

मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आए

अब्बास ताबिश

झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का

अब्बास ताबिश

इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी

अब्बास ताबिश

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

दम-ए-सुख़न ही तबीअ'त लहू लहू की जाए

अब्बास ताबिश

ऐसे तो कोई तर्क सुकूनत नहीं करता

अब्बास ताबिश

हर तरफ़ शोर-ए-फ़ुग़ाँ है कोई सुनता ही नहीं

अब्बास रिज़वी

अहल-ए-जुनूँ थे फ़स्ल-ए-बहाराँ के सर गए

अब्बास रिज़वी

वही दर्द है वही बेबसी तिरे गाँव में मिरे शहर में

अब्बास दाना

वफ़ादारी पे दे दी जान ग़द्दारी नहीं आई

अब्बास दाना

जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं

अब्बास दाना

दिल लगाया है तो नफ़रत भी नहीं कर सकते

अब्बास दाना

ये तुम से किस ने कहा है कि दास्ताँ न कहो

अब्बास अलवी

कौन जाने किस घड़ी याँ क्या से क्या हो कर रहे

आज़िम कोहली

तुम्हें गिला ही सही हम तमाशा करते हैं

आतिफ़ कमाल राना

बहार-ए-ज़ख़्म-ए-लब-ए-आतिशीं हुई मुझ से

आतिफ़ कमाल राना

अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है

आसी रामनगरी

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

आसी ग़ाज़ीपुरी

तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र

आशुफ़्ता चंगेज़ी

तय-शुदा मौसम

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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