शहर Poetry (page 94)

जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं

अब्दुल्लाह जावेद

रक़ीबान-ए-सियह-रू शहर-ए-देहली के मुसाहिब हैं

अब्दुल वहाब यकरू

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

अब्दुल वहाब यकरू

ऐ मेरी आँखो ये बे-सूद जुस्तुजू कैसी

अब्दुल वहाब सुख़न

कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मैं शब-ए-हिज्र क्या करूँ तन्हा

अब्दुल मतीन नियाज़

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है

अब्दुल हमीद अदम

दिन गुज़र जाएँगे सरकार कोई बात नहीं

अब्दुल हमीद अदम

भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें

अब्दुल हमीद अदम

आता है कौन दर्द के मारों के शहर में

अब्दुल हमीद अदम

आगही में इक ख़ला मौजूद है

अब्दुल हमीद अदम

आई हवा न रास जो सायों के शहर की

अब्दुल अहद साज़

फ़साद के ब'अद

अब्दुल अहद साज़

औज-बिन-उनुक़

अब्दुल अहद साज़

यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें

अब्दुल अहद साज़

सवाल बे-अमान बन के रह गए

अब्दुल अहद साज़

मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

हसरत-ए-दीद नहीं ज़ौक़-ए-तमाशा भी नहीं

अब्दुल अहद साज़

दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है

अब्दुल अहद साज़

बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें

अब्दुल अहद साज़

पहले तो हम छान आए ख़ाक सारे शहर की

अब्बास ताबिश

मैं हूँ इस शहर में ताख़ीर से आया हुआ शख़्स

अब्बास ताबिश

घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा

अब्बास ताबिश

अभी तो घर में न बैठें कहो बुज़ुर्गों से

अब्बास ताबिश

पागल

अब्बास ताबिश

ये किस के ख़ौफ़ का गलियों में ज़हर फैल गया

अब्बास ताबिश

ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है

अब्बास ताबिश

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