शहर Poetry (page 96)

परछाइयाँ पकड़ने वाले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दयार-ए-ख़्वाब

आशुफ़्ता चंगेज़ी

अक़्द-नामे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आवारा परछाइयाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सिलसिला अब भी ख़्वाबों का टूटा नहीं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमें सफ़र की अज़िय्यत से फिर गुज़रना है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दूर तक फैला समुंदर मुझ पे साहिल हो गया

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए

आस मोहम्मद मोहसिन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

आनिस मुईन

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है

आनन्द सरूप अंजुम

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए

आनन्द सरूप अंजुम

सलोनी सर्दियों की नज़्म

आमिर सुहैल

अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे

आल-ए-अहमद सूरूर

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