अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं
मस्त सारे शहर वाले ख़ून की होली में थे
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1305) Peoples Rate This
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
फ़ुग़ान-ए-दर्द में भी दर्द की ख़लिश ही नहीं
कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए