शहर Poetry (page 3)

दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'

ज़ुबैर क़ैसर

नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे

ज़ुबैर क़ैसर

लोग कहते हैं यहाँ एक हसीं रहता था

ज़ुबैर फ़ारूक़

तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ

ज़ुबैर अली ताबिश

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है

ज़िया मज़कूर

सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

ज़िया ज़मीर

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

ज़िया जालंधरी

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

ज़िया जालंधरी

अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा

ज़िया जालंधरी

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

ज़िया फ़ारूक़ी

इस शहर को रास आई हम जैसों की गुम-नामी

ज़ेहरा निगाह

इंसाफ़

ज़ेहरा निगाह

एक पुरानी कहानी

ज़ेहरा निगाह

रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं

ज़ेहरा निगाह

रिश्ते से मुहाफ़िज़ का ख़तरा जो निकल जाता

ज़ेहरा निगाह

रात गहरी थी फिर भी सवेरा सा था

ज़ेहरा निगाह

बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो

ज़ेहरा निगाह

मैसेज

ज़ेहरा अलवी

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

क़तरे

ज़ीशान साहिल

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

ख़त

ज़ीशान साहिल

एक मंज़र की ख़ामोशी

ज़ीशान साहिल

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