शहर Poetry (page 4)

दोस्त

ज़ीशान साहिल

यूँ बोली थी चिड़िया ख़ाली कमरे में

ज़ीशान साहिल

गर्द-ए-सफ़र में राह ने देखा नहीं मुझे

ज़ीशान साहिल

हम बे-घरों के दिल में जगाती है डर गली

ज़िशान इलाही

हैं काम-काज इतने बदन से लिपट गए

ज़ीशान साजिद

ऐसा है कौन जो मुझे हक़ तक रसाई दे

ज़ेबुन्निसा ज़ेबी

सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता

ज़ेब ग़ौरी

ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे

ज़मान कंजाही

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

सभी को ख़्वाहिश-ए-तस्ख़ीर-ए-शौक़-ए-हुक्मरानी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

पलकों पे तैरते हुए महशर तमाम-शुद

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मुद्दत हुई न मुझ से मिरा राब्ता हुआ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़ाक सहराओं की पलकों पे सजा ली हम ने

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हसीं यादें सुनहरे ख़्वाब पीछे छोड़ आए हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इक इश्क़-ए-ना-तमाम है रुस्वाइयाँ तमाम

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है

ज़करिय़ा शाज़

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है

ज़करिय़ा शाज़

किसी मंज़र के पस-मंज़र में जा कर

ज़ाहिद शम्सी

दार-उल-अमान के दरवाज़े पर

ज़ाहिद मसूद

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

ज़ाहिद कमाल

है मेरे सर से कोई बोझ उतारने वाला

ज़ाहिद फ़ारानी

गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर

ज़ाहिद फ़ारानी

ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार में नूर-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखो

ज़ाहिद चौधरी

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

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