शहर Poetry (page 92)
मेरे जुनून-ए-शौक़ को इतनी सी काएनात बस
अफ़ीफ़ सिराज
नज़्म
आदिल मंसूरी
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से
आदिल मंसूरी
पहलू के आर-पार गुज़रता हुआ सा हो
आदिल मंसूरी
होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था
आदिल मंसूरी
चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई
आदिल मंसूरी
आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के
आदिल मंसूरी
बात जो तुझ से ज़बानी हो गई
आदिल हयात
अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे
आदिल फ़रीदी
उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए
अदीम हाशमी
शोर सा एक हर इक सम्त बपा लगता है
अदीम हाशमी
मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे
अदीम हाशमी
ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया
अदीम हाशमी
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
अदीम हाशमी
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
अदा जाफ़री
तुम जो सियाने हो गुन वाले हो
अदा जाफ़री
न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले
अदा जाफ़री
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
अदा जाफ़री
हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले
अदा जाफ़री
गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई
अदा जाफ़री
चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
अदा जाफ़री
अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना
अदा जाफ़री
नक़्श-ए-यक़ीं तिरा वजूद-ए-वहम बुझा गुमाँ बुझा
अबुल हसनात हक़्क़ी
ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा
अबु मोहम्मद सहर
फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं
अबु मोहम्मद सहर
ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला
अबु मोहम्मद सहर
बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं
अबु मोहम्मद सहर
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
आबरू शाह मुबारक
दिवाने दिल कूँ मेरे शहर सें हरगिज़ नहीं बनती
आबरू शाह मुबारक
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
आबरू शाह मुबारक
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