शहर Poetry (page 90)

हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं

अहमद अता

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

अहमद अता

इक अश्क बहा होगा

अहमद अता

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आज

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

नज़र बचा के वो हम से गुज़र गए चुप-चाप

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

घर से निकलना जब मिरी तक़दीर हो गया

आग़ाज़ बरनी

दिल था कि ग़म-ए-जाँ था

आग़ाज़ बरनी

अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे

आग़ाज़ बरनी

आमद आमद है तिरे शहर में किस वहशी की

आग़ा हज्जू शरफ़

घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़

मैं ने दिल-ए-बे-ताब पे जो जब्र किया है

अफ़ज़ल परवेज़

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

अफ़ज़ल परवेज़

गर्द उड़े या कोई आँधी ही चले

अफ़ज़ल परवेज़

जंग से जंगल बना जंगल से मैं निकला नहीं

अफ़ज़ाल नवेद

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

अफ़ज़ाल नवेद

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

अफ़ज़ाल नवेद

उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में

अफ़ज़ल मिनहास

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है

अफ़ज़ल मिनहास

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

चुप रहे तो शहर की हंगामा आराई मिली

अफ़ज़ल मिनहास

तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज

अफ़ज़ल ख़ान

उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है

अफ़ज़ल ख़ान

कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए

अफ़ज़ल ख़ान

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ

अफ़ज़ल गौहर राव

हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता

अफ़ज़ल गौहर राव

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