शहर Poetry (page 91)

आई थी उस तरफ़ जो हवा कौन ले गया

अफ़ज़ल गौहर राव

यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

वक़्त उन का दुश्मन है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

समुंदर ने तुम से क्या कहा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कुछ और रंग मैं तरतीब-ए-ख़ुश्क-ओ-तर करता

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

दरीचे में सितारा जागता है

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

वापसी

आफ़ताब शम्सी

हिजरत

आफ़ताब शम्सी

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

जू-ए-रवाँ हूँ ठहरा समुंदर नहीं हूँ मैं

आफ़ताब शम्सी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

ये पेड़ ये पहाड़ ज़मीं की उमंग हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ

आफ़ताब हुसैन

मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है

आफ़ताब हुसैन

किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है

आफ़ताब हुसैन

कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

फ़सील-ए-शहर-ए-तमन्ना में दर बनाते हुए

आफ़ताब हुसैन

अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं

आफ़ताब हुसैन

कहूँ जो कर्ब फ़क़त कर्ब-ए-ज़ात समझोगे

आफ़ताब आरिफ़

उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना

अफ़सर माहपुरी

फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख

अफ़रोज़ आलम

जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच

अफ़रोज़ आलम

जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच

अफ़रोज़ आलम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

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