हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
वैसे ही ख़याल आ गया है
मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी
लोग बे-मेहर न होते होंगे
तू ने मिज़्गाँ उठा के देखा भी
तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है
बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़
कोई ताइर इधर नहीं आता
वो लम्हा जो मेरा था