होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए
Javed Akhtar
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Parveen Shakir
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने
चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
आख़िरी टीस आज़माने को
आ देख कि मेरे आँसुओं में
जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
लोग बे-मेहर न होते होंगे
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था
कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं