जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
उस ने तो कुछ न कहा था शायद
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कोई ताइर इधर नहीं आता
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
दीप था या तारा क्या जाने
लोग बे-मेहर न होते होंगे
बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई
गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला