जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी
हाल उस का भी मेरे हाल सा था
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जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
कोई ताइर इधर नहीं आता
आशोब-ए-आगही
हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं
गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
दीप था या तारा क्या जाने
अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना
तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
तुम जो सियाने हो गुन वाले हो