बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
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दीप था या तारा क्या जाने
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
आलम ही और था जो शनासाइयों में था
जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
हाल खुलता नहीं जबीनों से
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
वैसे ही ख़याल आ गया है
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए