मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या
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जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
तुम जो सियाने हो गुन वाले हो
एक आईना रू-ब-रू है अभी
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था
गुल पर क्या कुछ बीत गई है
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा
आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था
वैसे ही ख़याल आ गया है