काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(821) Peoples Rate This
वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
दीप था या तारा क्या जाने
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले
तू ने मिज़्गाँ उठा के देखा भी
हर गाम सँभल सँभल रही थी
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
एक आईना रू-ब-रू है अभी