शहर Poetry (page 93)

ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली

आबरू शाह मुबारक

नई हवा में कोई रंग-ए-काएनात में गुम

अबरार किरतपुरी

क्या क्या धरे अजूबे हैं शहर-ए-ख़याल में

अबरार हामिद

ख़ुशी के वक़्त भी तुझ को मलाल कैसा है

अबरार हामिद

ज़िंदा आदमी से कलाम

अबरार अहमद

पिछले पहर की दस्तक

अबरार अहमद

मिट्टी थी किस जगह की

अबरार अहमद

मेरे पास क्या कुछ नहीं

अबरार अहमद

हम कि इक भेस लिए फिरते हैं

अबरार अहमद

हवा हर इक सम्त बह रही है

अबरार अहमद

आख़िरी दिन से पहले

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

अबरार अहमद

फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है

आबिद वदूद

सिर्फ़ कर्ब-ए-अना दिया है मुझे

आबिद मुनावरी

शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है

आबिद मलिक

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

अजनबी

आबिद आलमी

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है

अब्दुस्समद ’तपिश’

कुछ न किया अरबाब-ए-जुनूँ ने फिर भी इतना काम किया

अब्दुर रऊफ़ उरूज

ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

पंछियों के रू-ब-रू क्या ज़िक्र-ए-नादारी करूँ

अब्दुर्रहीम नश्तर

दश्त-ए-अफ़्कार में सूखे हुए फूलों से मिले

अब्दुर्रहीम नश्तर

अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

क़दम क़दम पे नया इम्तिहाँ है मेरे लिए

अब्दुल्लाह कमाल

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