शेर Poetry (page 10)

एहतियातन उसे छुआ नहीं है

इमरान आमी

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर

इमदाद अली बहर

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

इलियास इश्क़ी

इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो

इफ़्तिख़ार राग़िब

कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

हज़ीं तुम अपनी कभी वज़्अ भी सँवारोगे

हज़ीं लुधियानवी

हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है

हयात मदरासी

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

हातिम अली मेहर

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

हम से आबाद है ये शेर-ओ-सुख़न की महफ़िल

हाशिम रज़ा जलालपुरी

सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के

हाशिम रज़ा जलालपुरी

न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया

हसन नईम

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