राजसी Poetry (page 5)

हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

गुरेज़

सलाम मछली शहरी

हम उन से आज का शिकवा करेंगे

सख़ी लख़नवी

न बचपन में कहो हम को कड़ी बात

सख़ी लख़नवी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

गुरेज़

साहिर लुधियानवी

जब कभी उन की तवज्जोह में कमी पाई गई

साहिर लुधियानवी

इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से

साहिर होशियारपुरी

यूँ भी हुआ इक अर्से तक इक शे'र न मुझ से तमाम हुआ

सहबा अख़्तर

जब सामने की बात ही उलझी हुई मिले

सग़ीर मलाल

शहर के लोग जिसे तेरी सितम-ज़ाई कहें

सफ़दर सलीम सियाल

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ

सबा अकबराबादी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

लोग उट्ठे हैं तिरी बज़्म से क्या क्या हो कर

रिफ़अत सेठी

एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ

रिफ़अत सरोश

जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया

रज़ा अज़ीमाबादी

महरूमियों का अपनी न शिकवा हो क्यूँ हमें

रज़ा अमरोही

हमारे ख़्वाब हमारी पसंद होते गए

रौनक़ रज़ा

कितना नादिम हूँ किसी शख़्स से शिकवा कर के

रासिख़ इरफ़ानी

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

राशिद मुफ़्ती

छुट गए हम जो असीर-ए-ग़म-ए-हिज्राँ हो कर

रशीद रामपुरी

आप दिल जा कर जो ज़ख़्मी हो तो मिज़्गाँ क्या करे

रशीद लखनवी

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

ज़िंदगी मुझ को कहाँ ले आई है

रमज़ान अली सहर

ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

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