राजसी Poetry (page 9)

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

बहज़ाद लखनवी

मुझे शिकवा नहीं बर्बाद रख बर्बाद रहने दे

बेदम शाह वारसी

बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था

बेदम शाह वारसी

इश्वा है नाज़ है ग़म्ज़ा है अदा है क्या है

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

बशीर बद्र

मुझे जीना नहीं आता

बशर नवाज़

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

उस ने मिरे मरने के लिए आज दुआ की

अज़ीज़ वारसी

तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम

अज़ीज़ क़ैसी

तमाम शहर को तारीकियों से शिकवा है

अज़ीज़ नबील

तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं

अज़ीज़ लखनवी

ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़

अज़ीज़ हामिद मदनी

शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की

अज़हर इनायती

ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना

अय्यूब ख़ावर

बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था

अतीक़ुल्लाह

बे-नियाज़ाना हर इक राह से गुज़रा भी करो

अतहर नफ़ीस

शिकवा-ए-मुख़्तसर

असरार-उल-हक़ मजाज़

हंगामा-ए-हस्ती से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

असलम फ़र्रुख़ी

तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं

अासिफ़ा ज़मानी

सर्द-मेहरी से तिरी दिल जो तपाँ रखते हैं

अश्क रामपुरी

घरौंदे

असग़र मेहदी होश

इश्क़ में शिकवा कुफ़्र है और हर इल्तिजा हराम

असर रामपुरी

वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं

असर रामपुरी

भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो

आरज़ू लखनवी

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

अरशद अली ख़ान क़लक़

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

अरशद अली ख़ान क़लक़

उन से इज़हार-ए-शिकायत करूँ या न करूँ

अर्श सहबाई

'अर्श' पहले ये शिकायत थी ख़फ़ा होता है वो

अर्श मलसियानी

लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा

अर्श मलसियानी

हुस्न हर रंग में मख़्सूस कशिश रखता है

अनवापुल हसन अनवार

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