शिकवा-ए-मुख़्तसर

मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ोहरा-जबीनों से

हुई जिन से न मेरे शौक़-ए-रुस्वा की पज़ीराई

मुझे शिकवा नहीं उन पाक बातिन नुक्ता-चीनों से

लब-ए-मोजिज़-नुमा ने जिन के मुझ पर आग बरसाई

मुझे शिकवा नहीं तहज़ीब के उन पासबानों से

न लेने दी जिन्हों ने फ़ितरत-ए-शाइ'र को अंगड़ाई

मुझे शिकवा नहीं दैर-ओ-हरम के आस्तानों से

वो जिन के दर पे की है मुद्दतों मैं ने जबीं-साई

मुझे शिकवा नहीं उफ़्तादगान-ए-ऐश-ओ-इशरत से

वो जिन को मेरे हाल-ए-ज़ार पर अक्सर हँसी आई

मुझे शिकवा नहीं उन साहिबान-ए-जाह-ओ-सरवत से

नहीं आती मिरे हिस्सा में जिन की एक भी पाई

ज़माने के निज़ाम-ए-ज़ंग-आलूदा से शिकवा है

क़वानीन-ए-कुहन आईन-ए-फ़र्सूदा से शिकवा है

(777) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shikwa-e-muKHtasar In Hindi By Famous Poet Asrar-ul-Haq Majaz. Shikwa-e-muKHtasar is written by Asrar-ul-Haq Majaz. Complete Poem Shikwa-e-muKHtasar in Hindi by Asrar-ul-Haq Majaz. Download free Shikwa-e-muKHtasar Poem for Youth in PDF. Shikwa-e-muKHtasar is a Poem on Inspiration for young students. Share Shikwa-e-muKHtasar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.