राजसी Poetry (page 8)
दिल में इस का ख़याल क्यूँ आया
फ़ातिमा वसीया जायसी
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
फ़ातिमा हसन
ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया
फ़ातिमा हसन
क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई
फ़रीद जावेद
मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा
फ़ानी बदायुनी
जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या
फ़ानी बदायुनी
बे-ख़ुदी पे था 'फ़ानी' कुछ न इख़्तियार अपना
फ़ानी बदायुनी
आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन
फ़ना निज़ामी कानपुरी
हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
फ़ना निज़ामी कानपुरी
दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
फ़ना निज़ामी कानपुरी
नौहा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम जो तारीक राहों में मारे गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
निगाह-ए-बाग़बाँ कुछ मेहरबाँ मा'लूम होती है
एज़ाज़ अफ़ज़ल
मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं
एजाज़ वारसी
किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो
एजाज़ वारसी
लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
दिलावर फ़िगार
'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो
दिलावर फ़िगार
बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर
दर्शन सिंह
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
शीशे से ज़ियादा नाज़ुक था ये शीशा-ए-दिल जो टूट गया
दानिश फ़राही
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
दाग़ देहलवी
ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है
दाग़ देहलवी
उज़्र उन की ज़बान से निकला
दाग़ देहलवी
बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया
दाग़ देहलवी
दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर
डी. राज कँवल
बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने
बबल्स होरा सबा
एआद-ए-हिकायतें
बिमल कृष्ण अश्क
जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं
बेखुद बदायुनी
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं
बहज़ाद लखनवी
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