शोर Poetry (page 12)

बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया

सादिक़

चाँद गुम-सुम चमकता हुआ और मैं

सदफ़ जाफ़री

सितारे सो गए तो आसमाँ कैसा लगेगा

साबिर ज़फ़र

पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी

साबिर ज़फ़र

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

साबिर वसीम

खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं

साबिर वसीम

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

साबिर वसीम

इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

साबिर दत्त

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

साबिर

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

दिल में हो गर ख़्वाहिश-ए-तस्वीर-ए-इबरत देखना

सअादत बाँदवी

ये सिलसिला-ए-शाम-ओ-सहर यूँही नहीं है

रूही कंजाही

मोजज़ा कोई दिखाऊँ भी तो क्या

रूही कंजाही

ज़मीन फैल गई है हमारी रूह तलक

रियाज़ लतीफ़

तमाम ख़लियों में अक्सर सुनाई देता है

रियाज़ लतीफ़

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता

रियाज़ लतीफ़

क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा

रिफ़अत सरोश

विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में

रहमान फ़ारिस

सौ रहा था तो शोर बरपा था

रज़ी तिर्मिज़ी

वो जंग मैं ने महाज़-ए-अना पे हारी है

राज़ी अख्तर शौक़

रंग अब यूँ तिरी तस्वीर में भरता जाऊँ

राज़ी अख्तर शौक़

फिर जो देखा दूर तक इक ख़ामुशी पाई गई

राज़ी अख्तर शौक़

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

राज़ी अख्तर शौक़

घर की रौनक़

रज़ा नक़वी वाही

ख़ुश्क दामन पे बरसने नहीं देती मुझ को

रज़ा मौरान्वी

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