शोर Poetry (page 2)

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है

ज़ेब ग़ौरी

लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे

ज़रीना सानी

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

रौशनी लटकी हुई तलवार सी

ज़काउद्दीन शायाँ

मौत

ज़ाहिदा ज़ैदी

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

मिरे लोगो! मैं ख़ाली हाथ आया हूँ

ज़ाहिद मसूद

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

फ़ित्ना-गर शोख़ी-ए-हया कब तक

ज़हीर देहलवी

ग़ुरूर-ओ-नाज़-ओ-तकब्बुर के दिन तो कब के गए

ज़हीर अहमद ज़हीर

किसी का हो नहीं सकता है कोई काम रोज़े में

ज़फ़र कमाली

ये शहर ज़िंदा है लेकिन हर एक लफ़्ज़ की लाश

ज़फ़र इक़बाल

दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है

ज़फ़र इक़बाल

ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे

ज़फ़र इक़बाल

ये बात अलग है मिरा क़ातिल भी वही था

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

कैसी रुकी हुई थी रवानी मिरी तरफ़

ज़फ़र इक़बाल

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

ज़फ़र इक़बाल

हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो

ज़फ़र इक़बाल

पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो

ज़फ़र गोरखपुरी

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