शोर Poetry (page 10)

इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है

सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है

सालिम सलीम

ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल

सालिक लखनवी

अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें

सलीम सिद्दीक़ी

रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा

सलीम शहज़ाद

मेरे एहसास की रग रग में समाने वाले

सलीम शाहिद

कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है

सलीम कौसर

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

सलीम कौसर

अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है

सलीम फ़राज़

मेरा शोर-ए-ग़र्क़ाबी ख़त्म हो गया आख़िर

सलीम अहमद

जाने अंदर क्या हुआ मैं शोर सुन कर ऐ 'सलीम'

सलीम अहमद

मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ

सलीम अहमद

कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था

सलीम अहमद

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

सलीम अहमद

आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का

सलीम अहमद

गुरेज़

सलाम मछली शहरी

कार्तिक

सलाहुद्दीन परवेज़

है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को

सख़ी लख़नवी

हैं क़हक़हे किसी के किसी की हैं सिसकियाँ

सज्जाद शम्सी

गुज़रा है नागवार उन्हें बे-कसी का शोर

सज्जाद शम्सी

रात

सज्जाद बाक़र रिज़वी

शो'ला सा कोई बर्क़-ए-नज़र से नहीं उठता

सज्जाद बाक़र रिज़वी

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अँधेरे दिन की सफ़ारत को आए हैं अब के

सज्जाद बाक़र रिज़वी

शिकस्ता-दिल थे तिरा ए'तिबार क्या करते

साजिद अमजद

मुख़्तसर वक़्त है पर बातें कर

साइम जी

सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

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