सोच Poetry (page 15)

ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अचार का मर्तबान

फ़य्याज़ तहसीन

किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप

फ़े सीन एजाज़

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

कटी पहाड़ सी शब इंतिज़ार करते हुए

फ़र्रुख़ जाफ़री

वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर

फ़ारूक़ शफ़क़

कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला

फ़ारूक़ शफ़क़

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

सहर के उफ़ुक़ से

फ़ारूक़ मुज़्तर

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था

फ़ारूक़ मुज़्तर

हर नए मोड़ धूप का सहरा

फ़ारूक़ मुज़्तर

कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ

फ़ारूक़ बाँसपारी

मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर

फ़ारूक़ बख़्शी

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

रात से एक सोच में गुम हूँ

फरीहा नक़वी

खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए

फरीहा नक़वी

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा

फरीहा नक़वी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने

फ़रहत एहसास

रूह को तो इक ज़रा सी रौशनी दरकार है

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

फ़रहत एहसास

ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा

फ़रहत एहसास

हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है

फ़रहत एहसास

अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था

फ़रहत एहसास

ऐ हम-सफ़रो क्यूँ न यहीं शहर बसा लें

फख्र ज़मान

वो पहले अंधे कुएँ में गिराए जाते हैं

फख्र ज़मान

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