सूरज Poetry (page 12)

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

कौन पुर्सान-ए-हाल है मेरा

साक़ी अमरोहवी

हक़-नवाई को ज़माने की ज़बाँ कौन करे

समद अंसारी

बुझते सूरज के शरारे नूर बरसाने लगे

समद अंसारी

आहटों से दिमाग़ जलता है

समद अंसारी

चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल

सलमान अख़्तर

झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो

सलमान अख़्तर

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

सालिम सलीम

कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी

सलीम रज़ा रीवा

ख़ौफ़ आँखों में मिरी देख के चिंगारी का

सलीम सिद्दीक़ी

यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती है

सलीम सिद्दीक़ी

शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को

सलीम सिद्दीक़ी

शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत

सलीम शहज़ाद

ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर

सलीम शाहिद

फिर कोई महशर उठाने मेरी तन्हाई में आ

सलीम शाहिद

मेरे एहसास की रग रग में समाने वाले

सलीम शाहिद

मंज़र मिरी आँखों में रहे दश्त-ए-सफ़र के

सलीम शाहिद

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

इन दर-ओ-दीवार की आँखों से पट्टी खोल कर

सलीम शाहिद

घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न हो

सलीम शाहिद

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

सलीम शाहिद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई

सलीम शाहिद

आईनों से धूल मिटाने आते हैं

सलीम मुहीउद्दीन

वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ

सलीम कौसर

तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता

सलीम कौसर

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

सलीम कौसर

मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते

सलीम कौसर

ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने

सलीम कौसर

शाम ढलते ही तिरे ध्यान में आ जाता हूँ

सलीम फ़िगार

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