केक Poetry (page 22)

उस शकर-लब का मैं ख़याली हूँ

दाऊद औरंगाबादी

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

जब वो मह-ए-रुख़्सार यकायक नज़र आया

दाऊद औरंगाबादी

दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे

दाऊद औरंगाबादी

अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे

दाऊद औरंगाबादी

आतिश-ए-इश्क़ सूँ जो जलता है

दाऊद औरंगाबादी

सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया

दत्तात्रिया कैफ़ी

पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में

दत्तात्रिया कैफ़ी

रंग और नूर की तमसील से होगा कि नहीं

दानियाल तरीर

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं

दाग़ देहलवी

तरकीब-ए-सर्फ़ी

चाैधरी मोहम्मद नईम

लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न

चकबस्त ब्रिज नारायण

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी

चकबस्त ब्रिज नारायण

दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे

चकबस्त ब्रिज नारायण

जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे

बूम मेरठी

क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है

बिशन नरायण दराबर

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

भारत भूषण पन्त

दश्त में उड़ते बगूलों की ये मस्ती एक दिन

भारत भूषण पन्त

आज मक़्तल में ख़बर है कि चराग़ाँ होगा

बेताब सूरी

उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ

बेखुद बदायुनी

अन-कही को कही बनाना है

बेदिल हैदरी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

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