केक Poetry (page 20)

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से ऐ 'साबिर'

फ़ज़ल हुसैन साबिर

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

लोग मुझ को मिरे आहंग से पहचान गए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

हम हसीन ग़ज़लों से पेट भर नहीं सकते

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं ही इक शख़्स था यारान-ए-कुहन में ऐसा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

छाँव को तकते धूप में चलते एक ज़माना बीत गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं बोली तेरे लब पर है हँसी मेरी

फ़ौज़िया रबाब

किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है

फ़सीह अकमल

ये दिल-कथा है अदाकार तेरे बस में नहीं

फ़रताश सय्यद

हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक

फ़रताश सय्यद

मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर

फ़ारूक़ बख़्शी

जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में

फ़रहत कानपुरी

मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा

फ़रहत कानपुरी

रास्ते हम से राज़ कहने लगे

फ़रहत एहसास

ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से

फ़रहत एहसास

जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए

फ़रहत एहसास

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

तुम्हारे हुस्न के नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'सज्जाद-ज़हीर' के नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नुसख़ा-ए-उल्फ़त मेरा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मौज़ू-ए-सुख़न

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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