केक Poetry (page 26)

ग़ज़ल में जान पड़ी गुफ़्तुगू में फूल खिले

अरशद अब्दुल हमीद

आँखों में कहीं उस के भी तूफ़ाँ तो नहीं था

अर्श सिद्दीक़ी

न हर्फ़-ए-शौक़ न तर्ज़-ए-बयाँ से आती है

अरमान नज्मी

मुझे मुझ से मिलाती जा रही है

आरिफ़ इमाम

हालत-ए-हर्फ़ किस ने जानी है

आरिफ़ इमाम

फ़सील-ए-ज़ात से बाहर भी देखना है मुझे

आरिफ़ इमाम

ज़हराब-ए-तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिए

आरिफ़ अंसारी

दास्ताँ भी मुख़्तलिफ़ लहजा भी यारों से जुदा

आरिफ़ अंसारी

कितनी हसरत से तिरी आँख का बादल बरसा

आरिफ़ अब्दुल मतीन

छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले

आरिफ़ अब्दुल मतीन

मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

सुलैमान-ए-सुख़न तो ख़ैर क्या हूँ

अनवर शऊर

ज़ोर से आँधी चली तो बुझ गए सारे चराग़

अनवर सदीद

शेर-ओ-सुख़न की उस महफ़िल में सब से छोटे हम ही थे

अनवर नदीम

बड़े सुकून से ख़ुद अपने हम-सरों में रहे

अनवर मीनाई

इस इब्तिदा की सलीक़े से इंतिहा करते

अनवर मसूद

ज़ंजीर तो पैरों से थकन बाँधे हुए है

अंजुम बाराबंकवी

निगाह-ओ-दिल का अफ़्साना क़रीब-ए-इख़्तिताम आया

आनंद नारायण मुल्ला

भूले से भी लब पर सुख़न अपना नहीं आता

आनंद नारायण मुल्ला

पेच-ओ-ताब

अमजद नजमी

ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते

अमजद इस्लाम अमजद

आईनों में अक्स न हों तो हैरत रहती है

अमजद इस्लाम अमजद

क्यूँ ख़राबात में लाफ़-ए-हमा-दानी वाइ'ज़

अमीरुल्लाह तस्लीम

सबा बनाते हैं ग़ुंचा-दहन बनाते हैं

अमीर हम्ज़ा साक़िब

मीरास-ए-बे-बहा भी बचाई न जा सकी

अमीर हम्ज़ा साक़िब

ब-मजबूरी हर इक रंज-ओ-मेहन लिखना पड़ा मुझ को

अमीरुल इस्लाम हाशमी

साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना

अमीर मीनाई

शाइ'र की दुनिया

अमीर औरंगाबादी

मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा

अमीक़ हनफ़ी

अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है

अंबरीन हसीब अंबर

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