तबीयत Poetry (page 4)

चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की

शहज़ाद अहमद

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

ये क्या हुआ कि तबीअ'त सँभलती जाती है

शहरयार

कभी जो मारका ख़्वाबों से रत-जगों का हुआ

शहनाज़ नूर

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

टिक के बैठे कहाँ बेज़ार-तबीअत हम से

शफ़ीक़ सलीमी

मज़ा शबाब का जब है कि बा-ख़ुदा भी रहे

शायर फतहपुरी

हाथ से हाथ मिला दिल से तबीअ'त न मिली

शाद बिलगवी

हज़ार हैफ़ छुटा साथ हम-नशीनों का

शाद अज़ीमाबादी

औरत

शाद आरफ़ी

बदन से रूह रुख़्सत हो रही है

सीमाब अकबराबादी

आज दीवाने को बे-वज्ह सताया जाए

सरवर नेपाली

मौसमों वाले नए दाना ओ पानी वाले

सरफ़राज़ नवाज़

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई

सरदार सोज़

हर इक दिल यहाँ है मोहब्बत से आरी

सरदार सोज़

रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

हमल-सरा

साक़ी फ़ारुक़ी

ये किस ने भरम अपनी ज़मीं का नहीं रक्खा

साक़ी फ़ारुक़ी

सामने जब कोई भरपूर जवानी आए

साक़ी अमरोहवी

तमाम उम्र की तन्हाइयों पे भारी थी

सलीम शुजाअ अंसारी

कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया

सलीम शुजाअ अंसारी

बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया

सलीम शाहिद

हर-चंद तिरे ग़म का सहारा भी नहीं है

सलीम फ़राज़

मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है

सलीम अहमद

गुरेज़

सलाम मछली शहरी

हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

सलाम मछली शहरी

रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई

सख़ी लख़नवी

इन को नफ़रत इसे क्या कहते हैं

सख़ी लख़नवी

जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

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