तमन्ना Poetry (page 7)

ख़ाना-बर्बाद हुए बे-दर-ओ-दीवार रहे

सुल्तान अख़्तर

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने

सुलैमान अरीब

ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से

सुहैल अख़्तर

फ़क़ीह-ए-शहर से रिश्ता बनाए रहता हूँ

सुहैल अहमद ज़ैदी

शौक़-ए-बुतान-ए-अंजुमन-आरा लिए हुए

सुहा मुजद्ददी

दो आलम के आफ़ात से दूर कर दे

सुहा मुजद्ददी

तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही

सूफ़िया अनजुम ताज

खुल के रोने की तमन्ना थी हमें

सूफ़ी तबस्सुम

ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब

सूफ़ी तबस्सुम

वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया

सूफ़ी तबस्सुम

जब भी दो आँसू निकल कर रह गए

सूफ़ी तबस्सुम

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

सूफ़ी तबस्सुम

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

सूफ़ी तबस्सुम

ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा

सूफ़ी तबस्सुम

दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं

सुदर्शन फ़ाकिर

सिलसिला ख़त्म कर चले आए

सुभाष पाठक ज़िया

दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा

सुभाष पाठक ज़िया

रिश्तों की काएनात में सिमटी हुई हूँ मैं

सिया सचदेव

या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना

सिराज औरंगाबादी

रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा

सिराज औरंगाबादी

क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई

सिरज़ अालम ज़ख़मी

ब-ज़ाहिर जो नज़र आते हो तुम मसरूर ऐसा कैसे करते हो

सिराज अजमली

हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है

सिकंदर अली वज्द

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

सिद्दीक़ शाहिद

कार-ए-मुश्किल ही किया दुनिया में गर मैं ने किया

सिद्दीक़ शाहिद

वो हर हर क़दम पर सँभलते हुए

श्याम सुंदर लाल बर्क़

वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना

शुजा ख़ावर

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