अलगाव Poetry (page 12)

यूँ भला तुम पर सजा कब आइने में देखना

सलमान सिद्दीक़ी

लब-ए-तनूर

सलमान अंसारी

इज़्तिराब

सलमान अंसारी

हम जो पहले कहीं मिले होते

सलमान अख़्तर

न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है

सालिम सलीम

मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए

सालिम सलीम

इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है

सालिम सलीम

ख़ुशबू का लिबास

सलीमुर्रहमान

उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो

सलीम शाहिद

फिर कोई महशर उठाने मेरी तन्हाई में आ

सलीम शाहिद

दश्त की धूप भर गया मुझ में

सलीम मुहीउद्दीन

कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो

सलीम कौसर

कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है

सलीम कौसर

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

सलीम कौसर

सफ़र

सलीम अहमद

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

सलीम अहमद

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

सलीम अहमद

गुरेज़

सलाम मछली शहरी

हवा चली नंगी उजयाली

सलाहुद्दीन महमूद

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अक्सर बैठे तन्हाई की ज़ुल्फ़ें हम सुलझाते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अब के क़िमार-ए-इश्क़ भी ठहरा एक हुनर दानाई का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ये सराबों की शरारत भी न हो तो क्या हो

सज्जाद बलूच

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

राएगाँ हो रही थी तंहाई

साजिद हमीद

रूह को पहले ख़ाकसार किया

साजिद हमीद

तू ने पूछा है मिरे दोस्त!

साइमा असमा

कोई नहीं आता समझाने

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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