अलगाव Poetry (page 14)

ब-ज़ाहिर रौनक़ों में बज़्म-आराई में जीते हैं

सबिहा सबा, न्यूयार्क

मैं दरिया हूँ मगर दोनों तरफ़ साहिल है तन्हाई

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए

सबा अकबराबादी

वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी

सादुल्लाह शाह

पुर-हौल ख़राबों से शनासाई मिरी है

रूही कंजाही

मुस्तक़बिल की आँख

रियाज़ लतीफ़

चमगादड़

रियाज़ लतीफ़

बनारस

रियाज़ लतीफ़

मेरे अफ़्कार ने जिस शय से जिला पाई है

रियासत अली ताज

आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा

रिन्द लखनवी

ज़िंदगी तुझ से बिछड़ कर मैं जिया एक बरस

रिफ़अत सरोश

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द

रियाज़ मजीद

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया

रियाज़ मजीद

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

सेल्फ़ी

रहमान फ़ारिस

किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग

रेहाना रूही

जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए

रेहाना रूही

हमारे अज़ाबों का क्या पूछते हैं

रज़्ज़ाक़ अरशद

यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

मैं हूँ मेरी चश्म-ए-तर है रात है तंहाई है

राज़िक़ अंसारी

शब का सफ़र

रज़ी रज़ीउद्दीन

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

संग हैं नावक-ए-दुश्नाम हैं रुस्वाई है

राज़ी अख्तर शौक़

रंग अब यूँ तिरी तस्वीर में भरता जाऊँ

राज़ी अख्तर शौक़

ख़ुश्क दामन पे बरसने नहीं देती मुझ को

रज़ा मौरान्वी

काबा ओ दैर जिधर देखा उधर कसरत है

रज़ा अज़ीमाबादी

दिल बता और क्या है होने को

रज़ा अमरोही

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