अलगाव Poetry (page 16)

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे

इक़बाल साजिद

टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई

इक़बाल अज़ीम

सब तमन्नाओं से ख़्वाबों से निकल आए हैं

इक़बाल अशहर कुरेशी

हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था

इंतिख़ाब अालम

बैठ जाता था मैं थक कर अपने तन की छाँव में

इंतिख़ाब अालम

ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते

इन्दिरा वर्मा

ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ

इन्दिरा वर्मा

ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई

इंद्र सराज़ी

रहती है सब के पास तन्हाई

इंद्र सराज़ी

कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-ग़म-ए-तन्हाई हो

इमरान शनावर

तुम ने ये माजरा सुना है क्या

इमरान शमशाद

ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे

इमाम बख़्श नासिख़

क़द बढ़ाने के लिए बौनों की बस्ती में चलो

इमाम अाज़म

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

जाने वाले इतना बता दो फिर तुम कब तक आओगे

इमाम अाज़म

ये तिरा बाँकपन ये रानाई

इफ़्तिख़ार जमील शाहीन

बे-ख़बर मुझ से मिरे दिल में हमेशा हँसता

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सौग़ात

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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