ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
तेरे इस शहर की ये तन्हाई
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रहती है सब के पास तन्हाई
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
क्या ख़बर क्या ख़ता मिरी थी कि जो
कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
क्या ख़बर कब बरस के टूट पड़े
सावन की इस रिम-झिम में
दिल से दिल का रिश्ता होगा
दिन में जो साथ सब के हँसता था
और तो कोई था नहीं शायद
रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में