क्या ख़बर क्या ख़ता मिरी थी कि जो
मुझ से रूठा रहा ख़ुदा मेरा
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(758) Peoples Rate This
ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
राज़-दाँ होते हैं वो घर अक्सर
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
सावन की इस रिम-झिम में
और तो कोई था नहीं शायद
क्या ख़बर कब बरस के टूट पड़े
जिस का डर था वही हुआ यारो
बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
दिल से दिल का रिश्ता होगा
कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
दिन में जो साथ सब के हँसता था