क्या ख़बर कब बरस के टूट पड़े
हर तरफ़ ऐसी है घटा छाई
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बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
जिस का डर था वही हुआ यारो
ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
क्या ख़बर क्या ख़ता मिरी थी कि जो
रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में
और तो कोई था नहीं शायद
रहती है सब के पास तन्हाई
दिल से दिल का रिश्ता होगा
राज़-दाँ होते हैं वो घर अक्सर