कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
पर्दा यूँ ही हिला नहीं होता
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राज़-दाँ होते हैं वो घर अक्सर
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
दिन में जो साथ सब के हँसता था
क्या ख़बर कब बरस के टूट पड़े
दिल से दिल का रिश्ता होगा
और तो कोई था नहीं शायद
जिस का डर था वही हुआ यारो
रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में
रहती है सब के पास तन्हाई