अलगाव Poetry (page 10)

अपनी तन्हाई का सामान उठा लाए हैं

शाहिद कमाल

जो देखता है मुझे आईने के अंदर से

शाहिद कलीम

फिर उसी शोख़ की तस्वीर उतर आई है

शाहिद इश्क़ी

फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई

शाहिद इश्क़ी

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

शाहिद फ़रीद

आप के इज़्न-ए-मुलाक़ात से जी डरता है

शाहिद अख़्तर

गर्म-जोशी के नगर में सर्द-तन्हाई मिली

शाहीन बद्र

किसी आसेब-ज़दा दिल की सदा है क्या है

शाहबाज़ रिज़्वी

तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत के बअ'द

शहाब जाफ़री

तलाश

शहाब जाफ़री

मुझ को शाम-ए-हिज्र की ये जल्वा-आराई बहुत

शहाब अशरफ़

मुल्ज़िम ठहरी मैं अपनी सच्चाई से

सगुफ़ता यासमीन

क़ुर्बत-ए-हुस्न में भी दर्द के आसार मिले

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

कुंज-ए-तन्हाई बसाए हिज्र की लज़्ज़त में हूँ

शफ़ीक़ सलीमी

गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर

शफ़ीक़ सलीमी

भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूँड लेता है

शफ़ीक़ ख़लिश

मौसम-ए-गुल है न दौर-जाम-ओ-सहबा रह गया

शफ़ीक़ जौनपुरी

वो तो आईना-नुमा था मुझ को

शबनम शकील

दर आया अंधेरा आँखों में और सब मंज़र धुँदलाए हैं

शबनम शकील

अपनी मजबूरी को हम दीवार-ओ-दर कहने लगे

शबनम रूमानी

दिल की धड़कन भी बड़ी चीज़ है तन्हाई में

शबनम नक़वी

तब्सिरा यूँ न मिरे हाल पे इतना होता

शबनम नक़वी

नज़्म

शबनम अशाई

मैं

शबनम अशाई

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ

शबाना यूसुफ़

बिखर जाएगी शाम आहिस्ता बोलो

शानुल हक़ हक़्क़ी

लज़्ज़त-ए-वस्ल से भी बढ़ के मज़ा आएगा

शाद अमृतसरी

होंटों पर महसूस हुई है आँखों से मादूम रही है

शाद आरफ़ी

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