अलगाव Poetry (page 8)

वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी

शमीम करहानी

शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें

शमीम अब्बास

किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं

शमीम अब्बास

हर नफ़स दीदा-ए-दिल में तिरी यादों का हुजूम

शकूर जावेद

तन्हाई का ग़म ढोएँ और रो रो जी हलकान करें

शाकिर ख़लीक़

कहाँ है आ जा

शकील बदायुनी

अलीगढ़ छोड़ने के ब'अद

शकील बदायुनी

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

तुझ को सोचों तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए

शकील आज़मी

एक सुराख़ सा कश्ती में हुआ चाहता है

शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है

शकील आज़मी

मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा

शकेब जलाली

ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए

शकेब जलाली

कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के

शकेब जलाली

दामन-ए-ज़ब्त को अश्कों में भिगो लेता हूँ

शकेब बनारसी

शब-ए-तन्हाई

शाइस्ता मुफ़्ती

एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

दुनिया अपनी मौत जल्द-अज़-जल्द मर जाने को है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

दुनिया अपनी मौत जल्द-अज़-जल्द मर जाने को है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

तेरी क़ुर्बत में गुज़ारे हुए कुछ लम्हे हैं

शहज़ाद अहमद

तेरे सीने में भी इक दाग़ है तन्हाई का

शहज़ाद अहमद

शायद लोग इसी रौनक़ को गर्मी-ए-महफ़िल कहते हैं

शहज़ाद अहमद

शहर को छोड़ के वीरानों में आबाद तो हो

शहज़ाद अहमद

अब तो साफ़ सुनता हूँ अपने दिल की हर धड़कन

शहज़ाद अहमद

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से

शहज़ाद अहमद

वैसे तो इक दूसरे की सब सुनते हैं

शहज़ाद अहमद

उठीं आँखें अगर आहट सुनी है

शहज़ाद अहमद

कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को

शहज़ाद अहमद

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