तीर Poetry (page 15)
उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए
बेदम शाह वारसी
तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
बेदम शाह वारसी
क़स्र-ए-जानाँ तक रसाई हो किसी तदबीर से
बेदम शाह वारसी
पर्दे उठे हुए भी हैं उन की इधर नज़र भी है
बेदम शाह वारसी
राज़ है इबरत-असर फ़ितरत की हर तहरीर का
बेबाक भोजपुरी
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
हम हथेली पे जान रखते हैं
बशीर महताब
इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया
बशीर अहमद बशीर
मरहला दिल का न तस्ख़ीर हुआ
बाक़ी सिद्दीक़ी
ऐ कहकशाँ-नवाज़ मुक़द्दर उजाल दे
बाक़र नक़वी
मेरा जनम दिन
बाक़र मेहदी
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
बहराम जी
सहम कर ऐ 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह
ज़फ़र
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
ज़फ़र
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर
ज़फ़र
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
ज़फ़र
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ज़फ़र
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
ज़फ़र
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
ज़फ़र
हिज्र में जो अश्क-ए-चश्म-ए-तर गिरा
बदर जमाली
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
अज़लान शाह
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
अज़लान शाह
कहानी
अज़ीज़ तमन्नाई
बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना
अज़ीज़ क़ैसी
दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए
अज़ीज़ क़ैसी
सुनो मुसाफ़िर! सराए-जाँ को तुम्हारी यादें जला चुकी हैं
अज़ीज़ नबील
कुछ देर तो दुनिया मिरे पहलू में खड़ी थी
अज़ीज़ नबील
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