तीर Poetry (page 17)

तक़दीर हो ख़राब तो तदबीर क्या करे

अरुण कुमार आर्य

चोट दिल पर लगे और आह ज़बाँ से निकले

अरुण कुमार आर्य

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

हर एक लम्हा-ए-ग़म बहर-ए-बे-कराँ की तरह

अरशद कमाल

परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो

अरशद अली ख़ान क़लक़

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

अरशद अली ख़ान क़लक़

जुनूँ के तौर हम इदराक ही से बाँधते हैं

अरशद अब्दुल हमीद

मेरे प्यारे वतन

अर्श मलसियानी

अगर तक़दीर तेरी बाइस-ए-आज़ार हो जाए

अर्श मलसियानी

जो गुम-गश्ता है उस की ज़ात क्या है

अरमान नज्मी

असर मिरी ज़बान में नहीं रहा

अक़ील शादाब

मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

रंगीं बना के दामन-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर को मैं

अनवर सहारनपुरी

जब फ़स्ल-ए-बहाराँ आती है शादाब गुलिस्ताँ होते हैं

अनवर सहारनपुरी

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया

अंजुम सलीमी

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया

अंजुम ख़लीक़

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

अब किसी अंधे सफ़र के लिए तय्यार हुआ चाहता है

अंजुम इरफ़ानी

नक़ाब उल्टा है शम्ओं' ने सितारो तुम तो सो जाओ

अनीस कैफ़ी

न मेरे हाथ से छुटना है मेरे नेज़े को

अनीस अशफ़ाक़

इसी ज़मीं पे इसी आसमाँ में रहना है

अनीस अशफ़ाक़

मिरा हर तीर निशाने पे न पहुँचा आख़िर

अनीस अंसारी

तुम जल्वा दिखाओ तो ज़रा पर्दा-ए-दर से

अमजद नजमी

न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं

अमजद नजमी

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