तीरगी Poetry (page 2)

मंज़िलों उस को आवाज़ देते रहे मंज़िलों जिस की कोई ख़बर भी न थी

ताब असलम

कोई भी नक़्श सलामत नहीं है चेहरे का

ताब असलम

वो दश्त-ए-तीरगी है कि कोई सदा न दे

सय्यद अहमद शमीम

ख़्वाब देखता हूँ

सुरूर बाराबंकवी

तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन

सुल्तान अख़्तर

बात कर दिल सती हिजाब निकाल

सिराज औरंगाबादी

हर इक क़दम पे ज़ख़्म नए खाए किस तरह

सिब्त अली सबा

बे-नश्शा बहक रहा हूँ कब से

शोहरत बुख़ारी

न रहबर ने न उस की रहबरी ने

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

दिल में शोला था सो आँखों में नमी बनता गया

शहपर रसूल

कुछ तो देखें असर चराग़ चले

शौक़ माहरी

हौसले की कमी से डरता हूँ

शौकत परदेसी

अजब शिकस्त का एहसास दिल पे छाया था

शारिक़ कैफ़ी

पहुँच गया था वो कुछ इतना रौशनी के क़रीब

शारिब मौरान्वी

जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो

शमशीर हैदर

मिली जो दिल को ख़ुशी तो ख़ुशी से घबराए

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो

शमीम रविश

चमन चमन जो ये सुब्ह-ए-बहार की ज़ौ है

शमीम करहानी

अगरचे इश्क़ में इक बे-ख़ुदी सी रहती है

शमीम करहानी

कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे

शकील बदायुनी

क़दम उठे हैं तो धूल आसमान तक जाए

शकील आज़मी

मुबारक वो साअत

शकेब जलाली

जिहत की तलाश

शकेब जलाली

वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था

शकेब जलाली

वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत

शकेब जलाली

रौशन हैं दिल के दाग़ न आँखों के शब-चराग़

शकेब जलाली

इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से

शकेब जलाली

तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगी

शहज़ाद अहमद

ज़हरीली तख़्लीक़

शहज़ाद अहमद

जीने मरने के दरमियान एक साअत

शहज़ाद अहमद

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