तीरगी Poetry (page 1)

इस्तिआ'रा

हारिस ख़लीक़

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

तिरा ख़याल फ़रोज़ाँ है देखिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

फैली हुई है सारी दिशाओं में रौशनी

ज़ीशान साजिद

मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे

ज़ेब ग़ौरी

चमका जो तीरगी में उजाला बिखर गया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

सवाली

यूसुफ़ ज़फ़र

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा

याक़ूब उस्मानी

रौशनी का क़ालिब जब तीरगी में ढलता है

यहया ख़ालिद

क़िस्मत की तीरगी की कहानी न पूछिए

वासिफ़ देहलवी

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ

वसीम बरेलवी

अगर ग़ुबार हो दिल में अगर हो तंग-नज़र

वामिक़ जौनपुरी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

मौत की जुस्तुजू

वहीद अख़्तर

हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात

वहाब दानिश

किसे बताऊँ कि ग़म क्या है सरख़ुशी क्या है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

न जाने आग कैसी आइनों में सो रही थी

तौक़ीर अब्बास

अश्क टपकें लाख होंटों की हँसी जाती नहीं

तरुणा मिश्रा

ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते

तारिक़ नईम

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