तीरगी Poetry (page 7)

रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही

बलवान सिंह आज़र

रौशनी ही रौशनी है शहर में

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है

आज़ाद गुलाटी

अन-गिनत अज़ाब हैं रतजगों के दरमियाँ

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

दिलों के दर्द जगा ख़्वाहिशों के ख़्वाब सजा

अता शाद

शौक़-ए-गुरेज़ाँ

असरार-उल-हक़ मजाज़

बिजली हुई फ़ेल

असरार जामई

रंग सारे अपने अंदर रफ़्तगाँ के हैं

असलम महमूद

ज़हर

असलम आज़ाद

23-मार्च अज़ान-ए-सुब्ह-ए-नियाज़

अशरफ़ जावेद

हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ

असग़र वेलोरी

इक शख़्स अपने हाथ की तहरीर दे गया

असग़र राही

हम से दीवानों को असरी आगही डसती रही

असद रज़ा

जाऊँ कहाँ शुऊ'र-ए-हुनर किस के पास है

असद जाफ़री

तिरे बाज़ूओं का सहारा तो ले लूँ मगर उन में भी रच गई है थकन

आरिफ़ अब्दुल मतीन

तिरे बाज़ुओं का सहारा तो ले लूँ मगर इन में भी रच गई है थकन

आरिफ़ अब्दुल मतीन

फ़ज़ा-ए-दिल में घनी तीरगी सी लगती है

अनुभव गुप्ता

देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल

अंजुम रूमानी

कुछ अजनबी से लोग थे कुछ अजनबी से हम

अंजुम रूमानी

दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़

अंजुम रूमानी

दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़

अंजुम रूमानी

ब-फ़ैज़-ए-आगही ये क्या अज़ाब देख लिया

अंजुम ख़लीक़

कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो

अंजुम बाराबंकवी

ख़ामोशी का शहर

अनीस नागी

एक नज़्म

अनीस नागी

इल्म-ओ-जाह-ओ-ज़ोर-ओ-ज़र कुछ भी न देखा जाए है

आनंद नारायण मुल्ला

बंद था दरवाज़ा भी और अगर में भी तन्हा था मैं

अमजद इस्लाम अमजद

तअ'ल्लुक़ात के सारे दिए बुझे हुए थे

आमिर नज़र

खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ

आमिर नज़र

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