तीरगी Poetry (page 5)

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

ख़ुदा से कलाम

इंजिला हमेश

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे

इम्दाद हमदानी

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शौक़

इफ़्तिख़ार आज़मी

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

हज़ीं तुम अपनी कभी वज़्अ भी सँवारोगे

हज़ीं लुधियानवी

जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं

हयात वारसी

चुप हैं हुज़ूर मुझ से कोई बात हो गई

हसन रिज़वी

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

निभाओ अब उसे जो वज़्अ भी बना ली है

हसन अख्तर जलील

इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी

हसन अख्तर जलील

हम तीरगी में शम्अ जलाए हुए तो हैं

हसन आबिदी

हम तीरगी में शम्अ' जलाए हुए तो हैं

हसन आबिद

सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी

हनीफ़ तरीन

नसीम-ए-सुब्ह-ए-बहार आए दिल-ए-हज़ीं को क़रार आए

हनीफ़ फ़ौक़

क्या नज़र की हुश्यारी ख़ुद-असीर-ए-मस्ती है

हनीफ़ फ़ौक़

इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ

हमदुन उसमानी

ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद

हकीम नासिर

इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी

हकीम नासिर

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं

हबीब जालिब

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती

फ़ज़्ल ताबिश

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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