विसाल Poetry (page 14)

तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा

असलम महमूद

न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के

असलम महमूद

मिज़ा पे ख़्वाब नहीं इंतिज़ार सा कुछ है

असलम महमूद

अब रात आ रही है

असलम इमादी

सदियों को बेहाल किया था

आसिमा ताहिर

चंद लम्हे विसाल-मौसम के

अासिफ़ शफ़ी

राह-ए-जुनूँ पे चल परे जीना मुहाल कर लिया

अासिफ़ शफ़ी

जमाल-ए-यार को तस्वीर करने वाले थे

अासिफ़ शफ़ी

दिल में वफ़ा की है तलब लब पे सवाल भी नहीं

अासिफ़ शफ़ी

वो बे-हुनर हूँ कि है ज़िंदगी वबाल मुझे

अासिफ़ जमाल

दैर-ओ-हरम भी आए कई इस सफ़र के बीच

अाशा प्रभात

गुम कर दिया है दीद ने यूँ सर-ब-सर मुझे

असग़र गोंडवी

तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं

असर लखनवी

कभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया

असअ'द बदायुनी

मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ

असअ'द बदायुनी

मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में

असअ'द बदायुनी

कहते हैं लोग शहर तो ये भी ख़ुदा का है

असअ'द बदायुनी

जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया

असअ'द बदायुनी

कोई नहीं है इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसाल के सिवा

अरशद लतीफ़

ये बारीक उन की कमर हो गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ

अरशद अली ख़ान क़लक़

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ

अरशद अली ख़ान क़लक़

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

लकीर-ए-संग को अन्क़ा-मिसाल हम ने किया

अरशद अब्दुल हमीद

हम हद-ए-इंदिमाल से भी गए

अर्श सिद्दीक़ी

सब लहू जम गया उबाल के बीच

आरिफ़ इमाम

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