गुम कर दिया है दीद ने यूँ सर-ब-सर मुझे

गुम कर दिया है दीद ने यूँ सर-ब-सर मुझे

मिलती है अब उन्हीं से कुछ अपनी ख़बर मुझे

नालों से मैं ने आग लगा दी जहान में

सय्याद जानता था फ़क़त मुश्त-ए-पर मुझे

अल्लाह रे उन के जल्वे की हैरत-फ़ज़ाइयाँ

ये हाल है कि कुछ नहीं आता नज़र मुझे

माना हरीम-ए-नाज़ का पाया बुलंद है

ले जाएगा उछाल के दर्द-ए-जिगर मुझे

ऐसा कि बुत-कदे का जिसे राज़ हो सुपुर्द

अहल-ए-हरम में कोई न आया नज़र मुझे

क्या दर्द-ए-हिज्र और ये क्या लज़्ज़त-ए-विसाल

इस से भी कुछ बुलंद मिली है नज़र मुझे

मस्त-ए-शबाब वो हैं मैं सरशार-ए-इश्क़ हूँ

मेरी ख़बर उन्हें है न उन की ख़बर मुझे

जब अस्ल इस मजाज़ ओ हक़ीक़त की एक है

फिर क्यूँ फिरा रहे हैं इधर से उधर मुझे

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